लूक़ा 23

32दो और मर्दों को भी फाँसी देने के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। दोनों मुज्रिम थे। 33चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिस का नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्हों ने ईसा को दोनों मुज्रिमों समेत मस्लूब किया। एक मुज्रिम को उस के दाएँ हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ लटका दिया गया। 34ईसा ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्यूँकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।”

उन्हों ने क़ुरआ डाल कर उस के कपड़े आपस में बाँट लिए। 35हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उस का मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्हों ने कहा, “उस ने औरों को बचाया है। अगर यह अल्लाह का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आप को बचाए।”

36फ़ौजियों ने भी उसे लान-तान की। उस के पास आ कर उन्हों ने उसे मै का सिरका पेश किया 37और कहा, “अगर तू यहूदियों का बादशाह है तो अपने आप को बचा ले।”

38उस के सर के ऊपर एक तख़्ती लगाई गई थी जिस पर लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह है।”

39जो मुज्रिम उस के साथ मस्लूब हुए थे उन में से एक ने कुफ़्र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आप को और हमें भी बचा ले।”

40लेकिन दूसरे ने यह सुन कर उसे डाँटा, “क्या तू अल्लाह से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है। 41हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्यूँकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इस ने कोई बुरा काम नहीं किया।” 42फिर उस ने ईसा से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।”

43ईसा ने उस से कहा, “मैं तुझे सच्च बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।”

ईसा की मौत

44बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। 45सूरज तारीक हो गया और बैत-उल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ पर्दा दो हिस्सों में फट गया। 46ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कह कर उस ने दम छोड़ दिया।

47यह देख कर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़्सर [a] सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़्सर। ने अल्लाह की तम्जीद करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।”

48और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देख कर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए। 49लेकिन ईसा के जानने वाले कुछ फ़ासिले पर खड़े देखते रहे। उन में वह ख़वातीन भी शामिल थीं जो गलील में उस के पीछे चल कर यहाँ तक उस के साथ आई थीं।

ईसा को दफ़न किया जाता है

50वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था 51लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हर्कतों पर रज़ामन्द नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहने वाला था और इस इन्तिज़ार में था कि अल्लाह की बादशाही आए। 52अब उस ने पीलातुस के पास जा कर उस से ईसा की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी। 53फिर लाश को उतार कर उस ने उसे कतान के कफ़न में लपेट कर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिस में अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था। 54यह तय्यारी का दिन यानी जुमआ था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था [b] यहूदी दिन सूरज के ग़ुरूब होने से शुरू होता है। 55जो औरतें ईसा के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्हों ने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा की लाश किस तरह उस में रखी गई है। 56फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुश्बूदार मसाले तय्यार करने लगीं। लेकिन बीच में सबत का दिन शुरू हुआ, इस लिए उन्हों ने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया।

[a] सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़्सर।
[b] यहूदी दिन सूरज के ग़ुरूब होने से शुरू होता है।