मरक़ुस 14

55मकान के अन्दर राहनुमा इमाम और यहूदी अदालत-ए-आलिया के तमाम अफ़राद ईसा के ख़िलाफ़ गवाहियाँ ढूँड रहे थे ताकि उसे सज़ा-ए-मौत दिलवा सकें। लेकिन कोई गवाही न मिली। 56काफ़ी लोगों ने उस के ख़िलाफ़ झूटी गवाही तो दी, लेकिन उन के बयान एक दूसरे के मुतज़ाद थे।

57आख़िरकार बाज़ ने खड़े हो कर यह झूटी गवाही दी, 58“हम ने इसे यह कहते सुना है कि मैं इन्सान के हाथों के बने इस बैत-उल-मुक़द्दस को ढा कर तीन दिन के अन्दर अन्दर नया मक़्दिस तामीर कर दूँगा, एक ऐसा मक़्दिस जो इन्सान के हाथ नहीं बनाएँगे।” 59लेकिन उन की गवाहियाँ भी एक दूसरी से मुतज़ाद थीं।

60फिर इमाम-ए-आज़म ने हाज़िरीन के सामने खड़े हो कर ईसा से पूछा, “क्या तू कोई जवाब नहीं देगा? यह क्या गवाहियाँ हैं जो यह लोग तेरे ख़िलाफ़ दे रहे हैं?”

61लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। उस ने कोई जवाब न दिया। इमाम-ए-आज़म ने उस से एक और सवाल किया, “क्या तू अल-हमीद का फ़र्ज़न्द मसीह है?”

62ईसा ने कहा, “जी, मैं हूँ। और आइन्दा तुम इब्न-ए-आदम को क़ादिर-ए-मुतलक़ के दहने हाथ बैठे और आस्मान के बादलों पर आते हुए देखोगे।”

63इमाम-ए-आज़म ने रंजिश का इज़्हार करके अपने कपड़े फाड़ लिए और कहा, “हमें मज़ीद गवाहों की क्या ज़रूरत रही! 64आप ने ख़ुद सुन लिया है कि इस ने कुफ़्र बका है। आप का क्या फ़ैसला है?”

सब ने उसे सज़ा-ए-मौत के लाइक़ क़रार दिया।

65फिर कुछ उस पर थूकने लगे। उन्हों ने उस की आँखों पर पट्टी बाँधी और उसे मुक्के मार मार कर कहने लगे, “नुबुव्वत कर!” मुलाज़िमों ने भी उसे थप्पड़ मारे।

लूक़ा 22

यहूदी अदालत-ए-आलिया के सामने पेशी

66जब दिन चढ़ा तो राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा पर मुश्तमिल क़ौम की मजलिस ने जमा हो कर उसे यहूदी अदालत-ए-आलिया में पेश किया। 67उन्हों ने कहा, “अगर तू मसीह है तो हमें बता!”

ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं तुम को बताऊँ तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे, 68और अगर तुम से पूछूँ तो तुम जवाब नहीं दोगे। 69लेकिन अब से इब्न-ए-आदम अल्लाह तआला के दहने हाथ बैठा होगा।”

70सब ने पूछा, “तो फिर क्या तू अल्लाह का फ़र्ज़न्द है?”

उस ने जवाब दिया, “जी, तुम ख़ुद कहते हो।”

71इस पर उन्हों ने कहा, “अब हमें किसी और गवाही की क्या ज़रूरत रही? क्यूँकि हम ने यह बात उस के अपने मुँह से सुन ली है।”

लूक़ा 23

पीलातुस के सामने

1फिर पूरी मजलिस उठी और उसे पीलातुस के पास ले आई। 2वहाँ वह उस पर इल्ज़ाम लगा कर कहने लगे, “हम ने मालूम किया है कि यह आदमी हमारी क़ौम को गुमराह कर रहा है। यह शहनशाह को टैक्स देने से मना करता और दावा करता है कि मैं मसीह और बादशाह हूँ।”

3पीलातुस ने उस से पूछा, “अच्छा, तुम यहूदियों के बादशाह हो?”

ईसा ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।”

4फिर पीलातुस ने राहनुमा इमामों और हुजूम से कहा, “मुझे इस आदमी पर इल्ज़ाम लगाने की कोई वजह नज़र नहीं आती।”

5लेकिन वह अड़े रहे। उन्हों ने कहा, “वह पूरे यहूदिया में तालीम देते हुए क़ौम को उकसाता है। वह गलील से शुरू करके यहाँ तक आ पहुँचा है।”

हेरोदेस के सामने

6यह सुन कर पीलातुस ने पूछा, “क्या यह शख़्स गलील का है?” 7जब उसे मालूम हुआ कि ईसा गलील यानी उस इलाक़े से है जिस पर हेरोदेस अनतिपास की हुकूमत है तो उस ने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्यूँकि वह भी उस वक़्त यरूशलम में था। 8हेरोदेस ईसा को देख कर बहुत ख़ुश हुआ, क्यूँकि उस ने उस के बारे में बहुत कुछ सुना था और इस लिए काफ़ी देर से उस से मिलना चाहता था। अब उस की बड़ी ख़्वाहिश थी कि ईसा को कोई मोजिज़ा करते हुए देख सके। 9उस ने उस से बहुत सारे सवाल किए, लेकिन ईसा ने एक का भी जवाब न दिया। 10राहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा साथ खड़े बड़े जोश से उस पर इल्ज़ाम लगाते रहे। 11फिर हेरोदेस और उस के फ़ौजियों ने उस की तह्क़ीर करते हुए उस का मज़ाक़ उड़ाया और उसे चमकदार लिबास पहना कर पीलातुस के पास वापस भेज दिया। 12उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस दोस्त बन गए, क्यूँकि इस से पहले उन की दुश्मनी चल रही थी।

सज़ा-ए-मौत का फ़ैसला

13फिर पीलातुस ने राहनुमा इमामों, सरदारों और अवाम को जमा करके 14उन से कहा, “तुम ने इस शख़्स को मेरे पास ला कर इस पर इल्ज़ाम लगाया है कि यह क़ौम को उकसा रहा है। मैं ने तुम्हारी मौजूदगी में इस का जाइज़ा ले कर ऐसा कुछ नहीं पाया जो तुम्हारे इल्ज़ामात की तस्दीक़ करे। 15हेरोदेस भी कुछ नहीं मालूम कर सका, इस लिए उस ने इसे हमारे पास वापस भेज दिया है। इस आदमी से कोई भी ऐसा क़ुसूर नहीं हुआ कि यह सज़ा-ए-मौत के लाइक़ है। 16इस लिए मैं इसे कोड़ों की सज़ा दे कर रिहा कर देता हूँ।”

17[असल में यह उस का फ़र्ज़ था कि वह ईद के मौक़े पर उन की ख़ातिर एक क़ैदी को रिहा कर दे।]

18लेकिन सब मिल कर शोर मचा कर कहने लगे, “इसे ले जाएँ! इसे नहीं बल्कि बर-अब्बा को रिहा करके हमें दें।” 19(बर-अब्बा को इस लिए जेल में डाला गया था कि वह क़ातिल था और उस ने शहर में हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।)

20पीलातुस ईसा को रिहा करना चाहता था, इस लिए वह दुबारा उन से मुख़ातिब हुआ। 21लेकिन वह चिल्लाते रहे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें।”

22फिर पीलातुस ने तीसरी दफ़ा उन से कहा, “क्यूँ? उस ने क्या जुर्म किया है? मुझे इसे सज़ा-ए-मौत देने की कोई वजह नज़र नहीं आती। इस लिए मैं इसे कोड़े लगवा कर रिहा कर देता हूँ।”

23लेकिन वह बड़ा शोर मचा कर उसे मस्लूब करने का तक़ाज़ा करते रहे, और आख़िरकार उन की आवाज़ें ग़ालिब आ गईं। 24फिर पीलातुस ने फ़ैसला किया कि उन का मुतालबा पूरा किया जाए। 25उस ने उस आदमी को रिहा कर दिया जो अपनी बाग़ियाना हर्कतों और क़त्ल की वजह से जेल में डाल दिया गया था जबकि ईसा को उस ने उन की मर्ज़ी के मुताबिक़ उन के हवाले कर दिया।

मरक़ुस 15

फ़ौजी ईसा का मज़ाक़ उड़ाते हैं

16फ़ौजी ईसा को गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के सहन में ले गए और पूरी पलटन को इकट्ठा किया। 17उन्हों ने उसे अर्ग़वानी रंग का लिबास पहनाया और काँटेदार टहनियों का एक ताज बना कर उस के सर पर रख दिया। 18फिर वह उसे सलाम करने लगे, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” 19लाठी से उस के सर पर मार मार कर वह उस पर थूकते रहे। घुटने टेक कर उन्हों ने उसे सिज्दा किया। 20फिर उस का मज़ाक़ उड़ाने से थक कर उन्हों ने अर्ग़वानी लिबास उतार कर उसे दुबारा उस के अपने कपड़े पहनाए। फिर वह उसे मस्लूब करने के लिए बाहर ले गए।

मरक़ुस 15

22यूँ चलते चलते वह ईसा को एक मक़ाम पर ले गए जिस का नाम गुल्गुता (यानी खोपड़ी का मक़ाम) था। 23वहाँ उन्हों ने उसे मै पेश की जिस में मुर मिलाया गया था, लेकिन उस ने पीने से इन्कार किया। 24फिर फ़ौजियों ने उसे मस्लूब किया और उस के कपड़े आपस में बाँट लिए। यह फ़ैसला करने के लिए कि किस को क्या क्या मिलेगा उन्हों ने क़ुरआ डाला। 25नौ बजे सुब्ह का वक़्त था जब उन्हों ने उसे मस्लूब किया। 26एक तख़्ती सलीब पर लगा दी गई जिस पर यह इल्ज़ाम लिखा था, “यहूदियों का बादशाह।” 27दो डाकुओं को भी ईसा के साथ मस्लूब किया गया, एक को उस के दहने हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ। 28[यूँ मुक़द्दस कलाम का वह हवाला पूरा हुआ जिस में लिखा है, ‘उसे मुज्रिमों में शुमार किया गया।’]

29जो वहाँ से गुज़रे उन्हों ने कुफ़्र बक कर उस की तज़्लील की और सर हिला हिला कर अपनी हिक़ारत का इज़्हार किया। उन्हों ने कहा, “तू ने तो कहा था कि मैं बैत-उल-मुक़द्दस को ढा कर उसे तीन दिन के अन्दर अन्दर दुबारा तामीर कर दूँगा। 30अब सलीब पर से उतर कर अपने आप को बचा!”

31राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा ने भी ईसा का मज़ाक़ उड़ा कर कहा, “इस ने औरों को बचाया, लेकिन अपने आप को नहीं बचा सकता। 32उसराईल का यह बादशाह मसीह अब सलीब पर से उतर आए ताकि हम यह देख कर ईमान लाएँ।” और जिन आदमियों को उस के साथ मस्लूब किया गया था उन्हों ने भी उसे लान-तान की।

ईसा की मौत

33दोपहर बारह बजे पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। यह तारीकी तीन घंटों तक रही।

लूक़ा 23

39जो मुज्रिम उस के साथ मस्लूब हुए थे उन में से एक ने कुफ़्र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आप को और हमें भी बचा ले।”

40लेकिन दूसरे ने यह सुन कर उसे डाँटा, “क्या तू अल्लाह से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है। 41हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्यूँकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इस ने कोई बुरा काम नहीं किया।” 42फिर उस ने ईसा से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।”

43ईसा ने उस से कहा, “मैं तुझे सच्च बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।”

ईसा की मौत

44बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। 45सूरज तारीक हो गया और बैत-उल-मुक़द्दस के मुक़द्दसतरीन कमरे के सामने लटका हुआ पर्दा दो हिस्सों में फट गया। 46ईसा ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कह कर उस ने दम छोड़ दिया।

47यह देख कर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़्सर [a] सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़्सर। ने अल्लाह की तम्जीद करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।”

48और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देख कर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए। 49लेकिन ईसा के जानने वाले कुछ फ़ासिले पर खड़े देखते रहे। उन में वह ख़वातीन भी शामिल थीं जो गलील में उस के पीछे चल कर यहाँ तक उस के साथ आई थीं।

ईसा को दफ़न किया जाता है

50वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था 51लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हर्कतों पर रज़ामन्द नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहने वाला था और इस इन्तिज़ार में था कि अल्लाह की बादशाही आए। 52अब उस ने पीलातुस के पास जा कर उस से ईसा की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी। 53फिर लाश को उतार कर उस ने उसे कतान के कफ़न में लपेट कर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिस में अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था। 54यह तय्यारी का दिन यानी जुमआ था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था [b] यहूदी दिन सूरज के ग़ुरूब होने से शुरू होता है। 55जो औरतें ईसा के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्हों ने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा की लाश किस तरह उस में रखी गई है। 56फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुश्बूदार मसाले तय्यार करने लगीं। लेकिन बीच में सबत का दिन शुरू हुआ, इस लिए उन्हों ने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया।

[a] सौ सिपाहियों पर मुक़र्रर अफ़्सर।
[b] यहूदी दिन सूरज के ग़ुरूब होने से शुरू होता है।