मरक़ुस 4

ईसा आँधी को थमा देता है

35उस दिन जब शाम हुई तो ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील के पार चलें।” 36चुनाँचे वह भीड़ को रुख़्सत करके उसे ले कर चल पड़े। बाज़ और कश्तियाँ भी साथ गईं। 37अचानक सख़्त आँधी आई। लहरें कश्ती से टकरा कर उसे पानी से भरने लगीं, 38लेकिन ईसा अभी तक कश्ती के पिछले हिस्से में अपना सर गद्दी पर रखे सो रहा था। शागिर्दों ने उसे जगा कर कहा, “उस्ताद, क्या आप को पर्वा नहीं कि हम तबाह हो रहे हैं?”

39वह जाग उठा, आँधी को डाँटा और झील से कहा, “ख़ामोश! चुप कर!” इस पर आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं। 40फिर ईसा ने शागिर्दों से पूछा, “तुम क्यूँ घबराते हो? क्या तुम अभी तक ईमान नहीं रखते?” 41उन पर सख़्त ख़ौफ़ तारी हो गया और वह एक दूसरे से कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? हवा और झील भी उस का हुक्म मानती हैं।”