लूक़ा 24

ईसा अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है

36वह अभी यह बातें सुना रहे थे कि ईसा ख़ुद उन के दर्मियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो।”

37वह घबरा कर बहुत डर गए, क्यूँकि उन का ख़याल था कि कोई भूत-प्रेत देख रहे हैं। 38उस ने उन से कहा, “तुम क्यूँ परेशान हो गए हो? क्या वजह है कि तुम्हारे दिलों में शक उभर आया है? 39मेरे हाथों और पाँओ को देखो कि मैं ही हूँ। मुझे टटोल कर देखो, क्यूँकि भूत के गोश्त और हड्डियाँ नहीं होतीं जबकि तुम देख रहे हो कि मेरा जिस्म है।”

40यह कह कर उस ने उन्हें अपने हाथ और पाँओ दिखाए। 41जब उन्हें ख़ुशी के मारे यक़ीन नहीं आ रहा था और ताज्जुब कर रहे थे तो ईसा ने पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है?” 42उन्हों ने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43उस ने उसे ले कर उन के सामने ही खा लिया।

44फिर उस ने उन से कहा, “यही है जो मैं ने तुम को उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।”

45फिर उस ने उन के ज़हन को खोल दिया ताकि वह अल्लाह का कलाम समझ सकें। 46उस ने उन से कहा, “कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, मसीह दुख उठा कर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा। 47फिर यरूशलम से शुरू करके उस के नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ। 48तुम इन बातों के गवाह हो। 49और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिस का वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुम को आस्मान की क़ुव्वत से मुलब्बस किया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।”

ईसा को आस्मान पर उठाया जाता है

50फिर वह शहर से निकल कर उन्हें बैत-अनियाह तक ले गया। वहाँ उस ने अपने हाथ उठा कर उन्हें बर्कत दी। 51और ऐसा हुआ कि बर्कत देते हुए वह उन से जुदा हो कर आस्मान पर उठा लिया गया। 52उन्हों ने उसे सिज्दा किया और फिर बड़ी ख़ुशी से यरूशलम वापस चले गए। 53वहाँ वह अपना पूरा वक़्त बैत-उल-मुक़द्दस में गुज़ार कर अल्लाह की तम्जीद करते रहे।