यशायाह 18
एथोपिया की अदालत
1फड़फड़ाते बादबानों [a] एक और मुम्किना तर्जुमा : फड़फड़ाती टिड्डियों। के मुल्क पर अफ़्सोस! एथोपिया पर अफ़्सोस जहाँ कूश के दरया बहते हैं, 2और जो अपने क़ासिदों को आबी नर्सल की कश्तियों में बिठा कर समुन्दरी सफ़रों पर भेजता है। ऐ तेज़रौ क़ासिदो, लम्बे क़द और चिकनी-चुपड़ी जिल्द वाली क़ौम के पास जाओ। उस क़ौम के पास पहुँचो जिस से दीगर क़ौमें दूरदराज़ इलाक़ों तक डरती हैं, जो ज़बरदस्ती सब कुछ पाँओ तले कुचल देती है, और जिस का मुल्क दरयाओं से बटा हुआ है।
3ऐ दुनिया के तमाम बाशिन्दो, ज़मीन के तमाम बसने वालो! जब पहाड़ों पर झंडा गाढ़ा जाए तो उस पर ध्यान दो! जब नरसिंगा बजाया जाए तो उस पर ग़ौर करो! 4क्यूँकि रब्ब मुझ से हमकलाम हुआ है, “मैं अपनी सुकूनतगाह से ख़ामोशी से देखता रहूँगा। लेकिन मेरी यह ख़ामोशी दोपहर की चिलचिलाती धूप या मौसम-ए-गर्मा में धुन्द के बादल की मानिन्द होगी।” 5क्यूँकि अंगूर की फ़सल के पकने से पहले ही रब्ब अपना हाथ बढ़ा देगा। फूलों के ख़त्म होने पर जब अंगूर पक रहे होंगे वह कोंपलों को छुरी से काटेगा, फैलती हुई शाख़ों को तोड़ तोड़ कर उन की काँट-छाँट करेगा। 6यही एथोपिया की हालत होगी। उस की लाशों को पहाड़ों के शिकारी परिन्दों और जंगली जानवरों के हवाले किया जाएगा। मौसम-ए-गर्मा के दौरान शिकारी परिन्दे उन्हें खाते जाएँगे, और सर्दियों में जंगली जानवर लाशों से सेर हो जाएँगे।
7उस वक़्त लम्बे क़द और चिकनी-चुपड़ी जिल्द वाली यह क़ौम रब्ब-उल-अफ़्वाज के हुज़ूर तुह्फ़ा लाएगी। हाँ, जिन लोगों से दीगर क़ौमें दूरदराज़ इलाक़ों तक डरती हैं और जो ज़बरदस्ती सब कुछ पाँओ तले कुचल देते हैं वह दरयाओं से बटे हुए अपने मुल्क से आ कर अपना तुह्फ़ा सिय्यून पहाड़ पर पेश करेंगे, वहाँ जहाँ रब्ब-उल-अफ़्वाज का नाम सुकूनत करता है।