यशायाह 46
देवता मदद नहीं कर सकते
1बाबल के देवता बेल और नबू झुक कर गिर गए हैं, और लादू जानवर उन के बुतों को उठाए फिर रहे हैं। तुम्हारे जो बुत उठाए जा सकते हैं थकेहारे जानवरों का बोझ बन गए हैं। 2क्यूँकि दोनों देवता झुक कर गिर गए हैं। वह बोझ बनने से बच न सके, और अब ख़ुद जिलावतनी में जा रहे हैं।
3“ऐ याक़ूब के घराने, सुनो! ऐ इस्राईल के घराने के बचे हुए अफ़राद, ध्यान दो! माँ के पेट से ही तुम मेरे लिए बोझ रहे हो, पैदाइश से पहले ही मैं तुमहें उठाए फिर रहा हूँ। 4तुम्हारे बूढ़े होने तक मैं वही रहूँगा, तुम्हारे बाल के सफ़ेद हो जाने तक तुम्हें उठाए फिरूँगा। यह इबतिदा से मेरा ही काम रहा है, और आइन्दा भी मैं तुझे उठाए फिरूँगा, आइन्दा भी तेरा सहारा बन कर तुझे बचाए रखूँगा।
5तुम मेरा मुक़ाबला किस से करोगे, मुझे किस के बराबर ठहराओगे? तुम मेरा मुवाज़ना किस से करोगे जो मेरी मानिन्द हो? 6लोग बुत बनवाने के लिए बटवे से कस्रत का सोना निकालते और चाँदी तराज़ू में तोलते हैं। फिर वह सुनार को बुत बनाने का ठेका देते हैं। जब तय्यार हो जाए तो वह झुक कर मुँह के बल उस की पूजा करते हैं। 7वह उसे अपने कंधों पर रख कर इधर उधर लिए फिरते हैं, फिर उसे दुबारा उस की जगह पर रख देते हैं। वहाँ वह खड़ा रहता है और ज़रा भी नहीं हिलता। लोग चिल्ला कर उस से फ़र्याद करते हैं, लेकिन वह जवाब नहीं देता, दुआगो को मुसीबत से नहीं बचाता।
8ऐ बेवफ़ा लोगो, इस का ख़याल रखो! मर्दानगी दिखा कर सन्जीदगी से इस पर ध्यान दो! 9जो कुछ अज़ल से पेश आया है उसे याद रखो। क्यूँकि मैं ही रब्ब हूँ, और मेरे सिवा कोई और नहीं। मैं ही रब्ब हूँ, और मेरी मानिन्द कोई नहीं।
10मैं इबतिदा से अन्जाम का एलान, क़दीम ज़माने से आने वाली बातों की पेशगोई करता आया हूँ। अब मैं फ़रमाता हूँ कि मेरा मन्सूबा अटल है, मैं अपनी मर्ज़ी हर लिहाज़ से पूरी करूँगा। 11मशरिक़ से मैं शिकारी परिन्दा बुला रहा हूँ, दूरदराज़ मुल्क से एक ऐसा आदमी जो मेरा मन्सूबा पूरा करे। ध्यान दो, जो कुछ मैं ने फ़रमाया वह तक्मील तक पहुँचाऊँगा, जो मन्सूबा मैं ने बाँधा वह पूरा करूँगा।
12ऐ ज़िद्दी लोगो जो रास्ती से कहीं दूर हो, मेरी सुनो! 13मैं अपनी रास्ती क़रीब ही लाया हूँ, वह दूर नहीं है। मेरी नजात के आने में देर नहीं होगी। मैं सिय्यून को नजात दूँगा, इस्राईल को अपनी शान-ओ-शौकत से नवाज़ूँगा।