मीकाह 6
अल्लाह इस्राईल पर इल्ज़ाम लगाता है
1ऐ इस्राईल, रब्ब का फ़रमान सुन, “अदालत में खड़े हो कर अपना मुआमला बयान कर! पहाड़ और पहाड़ियाँ तेरे गवाह हों, उन्हें अपनी बात सुना दे।”
2ऐ पहाड़ो, अब रब्ब का अपनी क़ौम पर इल्ज़ाम सुनो! ऐ दुनिया की क़दीम बुन्यादो, तवज्जुह दो! क्यूँकि रब्ब अदालत में अपनी क़ौम पर इल्ज़ाम लगा रहा है, वह इस्राईल से मुक़द्दमा उठा रहा है।
3वह सवाल करता है, “ऐ मेरी क़ौम, मैं ने तेरे साथ क्या ग़लत सुलूक किया? मैं ने क्या किया कि तू इतनी थक गई है? बता तो सही! 4हक़ीक़त तो यह है कि मैं तुझे मुल्क-ए-मिस्र से निकाल लाया, मैं ने फ़िद्या दे कर तुझे ग़ुलामी से रिहा कर दिया। साथ साथ मैं ने मूसा, हारून और मरियम को भेजा ताकि तेरे आगे चल कर तेरी राहनुमाई करें। 5ऐ मेरी क़ौम, वह वक़्त याद कर जब मोआब के बादशाह बलक़ ने बलआम बिन बओर को बुलाया ताकि तुझ पर लानत भेजे। लानत की बजाय उस ने तुझे बर्कत दी! वह सफ़र भी याद कर जब तू शित्तीम से रवाना हो कर जिल्जाल पहुँची। अगर तू इन तमाम बातों पर ग़ौर करे तो जान लेगी कि रब्ब ने कितनी वफ़ादारी और इन्साफ़ से तेरे साथ सुलूक किया है।”
6जब हम रब्ब के हुज़ूर आते हैं ताकि अल्लाह तआला को सिज्दा करें तो हमें अपने साथ क्या लाना चाहिए? क्या हमें यकसाला बछड़े उस के हुज़ूर ला कर भस्म करने चाहिएँ? 7क्या रब्ब हज़ारों मेंढों या तेल की बेशुमार नदियों से ख़ुश हो जाएगा? क्या मुझे अपने पहलौठे को अपने जराइम के इवज़ चढ़ाना चाहिए, अपने जिस्म के फल को अपने गुनाहों को मिटाने के लिए पेश करना चाहिए? हरगिज़ नहीं!
8ऐ इन्सान, उस ने तुझे साफ़ बताया है कि क्या कुछ अच्छा है। रब्ब तुझ से चाहता है कि तू इन्साफ़ क़ाइम रखे, मेहरबानी करने में लगा रहे और फ़रोतनी से अपने ख़ुदा के हुज़ूर चलता रहे।
यरूशलम को भी सामरिया की सी सज़ा मिलेगी
9सुनो! रब्ब यरूशलम को आवाज़ दे रहा है। तवज्जुह दो, क्यूँकि दानिशमन्द उस के नाम का ख़ौफ़ मानता है। ऐ क़बीले, ध्यान दो कि किस ने यह मुक़र्रर किया है,
10“अब तक नाजाइज़ नफ़ा की दौलत बेदीन आदमी के घर में जमा हो रही है, अब तक लोग गन्दुम बेचते वक़्त पूरा तोल नहीं तोलते, उन की ग़लत पैमाइश पर लानत! 11क्या मैं उस आदमी को बरी क़रार दूँ जो ग़लत तराज़ू इस्तेमाल करता है और जिस की थैली में हल्के बाट पड़े रहते हैं? हरगिज़ नहीं! 12यरूशलम के अमीर बड़े ज़ालिम हैं, लेकिन बाक़ी बाशिन्दे भी झूट बोलते हैं, उन की हर बात धोका ही धोका है!
13इस लिए मैं तुझे मार मार कर ज़ख़्मी करूँगा। मैं तुझे तेरे गुनाहों के बदले में तबाह करूँगा। 14तू खाना खाएगा लेकिन सेर नहीं होगा बल्कि पेट ख़ाली रहेगा। तू माल मह्फ़ूज़ रखने की कोशिश करेगा, लेकिन कुछ नहीं बचेगा। क्यूँकि जो कुछ तू बचाने की कोशिश करेगा उसे मैं तल्वार के हवाले करूँगा। 15तू बीज बोएगा लेकिन फ़सल नहीं काटेगा, ज़ैतून का तेल निकालेगा लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं करेगा, अंगूर का रस निकालेगा लेकिन उसे नहीं पिएगा। 16तू इस्राईल के बादशाहों उम्री और अख़ियब के नमूने पर चल पड़ा है, आज तक उन ही के मन्सूबों की पैरवी करता आया है। इस लिए मैं तुझे तबाही के हवाले कर दूँगा, तेरे लोगों को मज़ाक़ का निशाना बनाऊँगा। तुझे दीगर अक़्वाम की लान-तान बर्दाश्त करनी पड़ेगी।”