ज़करियाह 3
चौथी रोया : इमाम-ए-आज़म यशूअ
1इस के बाद रब्ब ने मुझे रोया में इमाम-ए-आज़म यशूअ को दिखाया। वह रब्ब के फ़रिश्ते के सामने खड़ा था, और इब्लीस उस पर इल्ज़ाम लगाने के लिए उस के दाएँ हाथ खड़ा हो गया था। 2रब्ब ने इब्लीस से फ़रमाया, “ऐ इब्लीस, रब्ब तुझे मलामत करता है! रब्ब जिस ने यरूशलम को चुन लिया वह तुझे डाँटता है! यह आदमी तो बाल बाल बच गया है, उस लकड़ी की तरह जो भड़कती आग में से छीन ली गई है।”
3यशूअ गन्दे कपड़े पहने हुए फ़रिश्ते के सामने खड़ा था। 4जो अफ़राद साथ खड़े थे उन्हें फ़रिश्ते ने हुक्म दिया, “उस के मैले कपड़े उतार दो।” फिर यशूअ से मुख़ातिब हुआ, “देख, मैं ने तेरा क़ुसूर तुझ से दूर कर दिया है, और अब मैं तुझे शानदार सफ़ेद कपड़े पहना देता हूँ।” 5मैं ने कहा, “वह उस के सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँधें!” चुनाँचे उन्हों ने यशूअ के सर पर पाक-साफ़ पगड़ी बाँध कर उसे नए कपड़े पहनाए। रब्ब का फ़रिश्ता साथ खड़ा रहा। 6यशूअ से उस ने बड़ी सन्जीदगी से कहा,
7“रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, ‘मेरी राहों पर चल कर मेरे अह्काम पर अमल कर तो तू मेरे घर की राहनुमाई और उस की बारगाहों की देख-भाल करेगा। फिर मैं तेरे लिए यहाँ आने और हाज़िरीन में खड़े होने का रास्ता क़ाइम रखूँगा।
8ऐ इमाम-ए-आज़म यशूअ, सुन! तू और तेरे सामने बैठे तेरे इमाम भाई मिल कर उस वक़्त की तरफ़ इशारा हैं जब मैं अपने ख़ादिम को जो कोंपल कहलाता है आने दूँगा। 9देखो वह जौहर जो मैं ने यशूअ के सामने रखा है। उस एक ही पत्थर पर सात आँखें हैं।’ रब्ब-उल-अफ़्वाज फ़रमाता है, ‘मैं उस पर कतबा कन्दा करके एक ही दिन में इस मुल्क का गुनाह मिटा दूँगा। 10उस दिन तुम एक दूसरे को अपनी अंगूर की बेल और अपने अन्जीर के दरख़्त के साय में बैठने की दावत दोगे।’ यह रब्ब-उल-अफ़्वाज का फ़रमान है।”