लूक़ा 4

ईसा को नासरत में रद्द किया जाता है

16एक दिन वह नासरत पहुँचा जहाँ वह पर्वान चढ़ा था। वहाँ भी वह मामूल के मुताबिक़ सबत के दिन मक़ामी इबादतख़ाने में जा कर कलाम-ए-मुक़द्दस में से पढ़ने के लिए खड़ा हो गया। 17उसे यसायाह नबी की किताब दी गई तो उस ने तूमार को खोल कर यह हवाला ढूँड निकाला,

18“रब्ब का रूह मुझ पर है,

क्यूँकि उस ने मुझे तेल से मसह करके

ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाने का इख़तियार दिया है।

उस ने मुझे यह एलान करने के लिए भेजा है कि

क़ैदियों को रिहाई मिलेगी

और अंधे देखेंगे।

उस ने मुझे भेजा है कि मैं कुचले हुओं को आज़ाद कराऊँ

19और रब्ब की तरफ़ से बहाली के साल का एलान करूँ।”

20यह कह कर ईसा ने तूमार को लपेट कर इबादतख़ाने के मुलाज़िम को वापस कर दिया और बैठ गया। सारी जमाअत की आँखें उस पर लगी थीं। 21फिर वह बोल उठा, “आज अल्लाह का यह फ़रमान तुम्हारे सुनते ही पूरा हो गया है।”

लूक़ा 8

ख़िदमतगुज़ार ख़वातीन ईसा के साथ सफ़र करती हैं

1इस के कुछ देर बाद ईसा मुख़्तलिफ़ शहरों और दीहातों में से गुज़र कर सफ़र करने लगा। हर जगह उस ने अल्लाह की बादशाही के बारे में ख़ुशख़बरी सुनाई। उस के बारह शागिर्द उस के साथ थे, 2नीज़ कुछ ख़वातीन भी जिन्हें उस ने बदरूहों से रिहाई और बीमारियों से शिफ़ा दी थी। इन में से एक मरियम थी जो मग्दलीनी कहलाती थी जिस में से सात बदरुहें निकाली गई थीं। 3फिर यूअन्ना जो ख़ूज़ा की बीवी थी (ख़ूज़ा हेरोदेस बादशाह का एक अफ़्सर था)। सूसन्ना और दीगर कई ख़वातीन भी थीं जो अपने माली वसाइल से उन की ख़िदमत करती थीं।

मरक़ुस 4

बीज बोने वाले की तम्सील

1फिर ईसा दुबारा झील के किनारे तालीम देने लगा। और इतनी बड़ी भीड़ उस के पास जमा हुई कि वह झील में खड़ी एक कश्ती में बैठ गया। बाक़ी लोग झील के किनारे पर खड़े रहे। 2उस ने उन्हें बहुत सी बातें तम्सीलों में सिखाईं। उन में से एक यह थी :

3“सुनो! एक किसान बीज बोने के लिए निकला। 4जब बीज इधर उधर बिखर गया तो कुछ दाने रास्ते पर गिरे और परिन्दों ने आ कर उन्हें चुग लिया। 5कुछ पथरीली ज़मीन पर गिरे जहाँ मिट्टी की कमी थी। वह जल्द उग आए क्यूँकि मिट्टी गहरी नहीं थी। 6लेकिन जब सूरज निकला तो पौदे झुलस गए और चूँकि वह जड़ न पकड़ सके इस लिए सूख गए। 7कुछ दाने ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान भी गिरे। वहाँ वह उगने तो लगे, लेकिन ख़ुदरौ पौदों ने साथ साथ बढ़ कर उन्हें फलने फूलने की जगह न दी। चुनाँचे वह भी ख़त्म हो गए और फल न ला सके। 8लेकिन ऐसे दाने भी थे जो ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे। वहाँ वह फूट निकले और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक फल लाए।”

9फिर उस ने कहा, “जो सुन सकता है वह सुन ले!”

तम्सीलों का मक़्सद

10जब वह अकेला था तो जो लोग उस के इर्दगिर्द जमा थे उन्हों ने बारह शागिर्दों समेत उस से पूछा कि इस तम्सील का क्या मतलब है? 11उस ने जवाब दिया, “तुम को तो अल्लाह की बादशाही का भेद समझने की लियाक़त दी गई है। लेकिन मैं इस दाइरे से बाहर के लोगों को हर बात समझाने के लिए तम्सीलें इस्तेमाल करता हूँ 12ताकि पाक कलाम पूरा हो जाए कि

‘वह अपनी आँखों से देखेंगे मगर कुछ नहीं जानेंगे,

वह अपने कानों से सुनेंगे मगर कुछ नहीं समझेंगे,

ऐसा न हो कि वह मेरी तरफ़ रुजू करें

और उन्हें मुआफ़ कर दिया जाए’।”

बीज बोने वाले की तम्सील का मतलब

13फिर ईसा ने उन से कहा, “क्या तुम यह तम्सील नहीं समझते? तो फिर बाक़ी तमाम तम्सीलें किस तरह समझ पाओगे? 14बीज बोने वाला अल्लाह का कलाम बो देता है। 15रास्ते पर गिरने वाले दाने वह लोग हैं जो कलाम को सुनते तो हैं, लेकिन फिर इब्लीस फ़ौरन आ कर वह कलाम छीन लेता है जो उन में बोया गया है। 16पथरीली ज़मीन पर गिरने वाले दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते ही उसे ख़ुशी से क़बूल तो कर लेते हैं, 17लेकिन वह जड़ नहीं पकड़ते और इस लिए ज़ियादा देर तक क़ाइम नहीं रहते। जूँ ही वह कलाम पर ईमान लाने के बाइस किसी मुसीबत या ईज़ारसानी से दोचार हो जाएँ, तो वह बर्गश्ता हो जाते हैं। 18ख़ुदरौ काँटेदार पौदों के दर्मियान गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुनते तो हैं, 19लेकिन फिर रोज़मर्रा की परेशानियाँ, दौलत का फ़रेब और दीगर चीज़ों का लालच कलाम को फलने फूलने नहीं देते। नतीजे में वह फल लाने तक नहीं पहुँचता। 20इस के मुक़ाबले में ज़रख़ेज़ ज़मीन में गिरे हुए दाने वह लोग हैं जो कलाम सुन कर उसे क़बूल करते और बढ़ते बढ़ते तीस गुना, साठ गुना बल्कि सौ गुना तक फल लाते हैं।”

मरक़ुस 4

राई के दाने की तम्सील

30फिर ईसा ने कहा, “हम अल्लाह की बादशाही का मुवाज़ना किस चीज़ से करें? या हम कौन सी तम्सील से इसे बयान करें? 31वह राई के दाने की मानिन्द है जो ज़मीन में डाला गया हो। राई बीजों में सब से छोटा दाना है 32लेकिन बढ़ते बढ़ते सबज़ियों में सब से बड़ा हो जाता है। उस की शाख़ें इतनी लम्बी हो जाती हैं कि परिन्दे उस के साय में अपने घोंसले बना सकते हैं।”

33ईसा इसी क़िस्म की बहुत सी तम्सीलों की मदद से उन्हें कलाम यूँ सुनाता था कि वह इसे समझ सकते थे। 34हाँ, अवाम को वह सिर्फ़ तम्सीलों के ज़रीए सिखाता था। लेकिन जब वह अपने शागिर्दों के साथ अकेला होता तो वह हर बात की तश्रीह करता था।

ईसा आँधी को थमा देता है

35उस दिन जब शाम हुई तो ईसा ने अपने शागिर्दों से कहा, “आओ, हम झील के पार चलें।” 36चुनाँचे वह भीड़ को रुख़्सत करके उसे ले कर चल पड़े। बाज़ और कश्तियाँ भी साथ गईं। 37अचानक सख़्त आँधी आई। लहरें कश्ती से टकरा कर उसे पानी से भरने लगीं, 38लेकिन ईसा अभी तक कश्ती के पिछले हिस्से में अपना सर गद्दी पर रखे सो रहा था। शागिर्दों ने उसे जगा कर कहा, “उस्ताद, क्या आप को पर्वा नहीं कि हम तबाह हो रहे हैं?”

39वह जाग उठा, आँधी को डाँटा और झील से कहा, “ख़ामोश! चुप कर!” इस पर आँधी थम गई और लहरें बिलकुल साकित हो गईं। 40फिर ईसा ने शागिर्दों से पूछा, “तुम क्यूँ घबराते हो? क्या तुम अभी तक ईमान नहीं रखते?” 41उन पर सख़्त ख़ौफ़ तारी हो गया और वह एक दूसरे से कहने लगे, “आख़िर यह कौन है? हवा और झील भी उस का हुक्म मानती हैं।”

मरक़ुस 5

याईर की बेटी और बीमार औरत

21ईसा ने कश्ती में बैठे झील को दुबारा पार किया। जब दूसरे किनारे पहुँचा तो एक हुजूम उस के गिर्द जमा हो गया। वह अभी झील के पास ही था 22कि मक़ामी इबादतख़ाने का एक राहनुमा उस के पास आया। उस का नाम याईर था। ईसा को देख कर वह उस के पाँओ में गिर गया 23और बहुत मिन्नत करने लगा, “मेरी छोटी बेटी मरने वाली है, बराह-ए-करम आ कर उस पर अपने हाथ रखें ताकि वह शिफ़ा पा कर ज़िन्दा रहे।”

24चुनाँचे ईसा उस के साथ चल पड़ा। एक बड़ी भीड़ उस के पीछे लग गई और लोग उसे घेर कर हर तरफ़ से दबाने लगे।

25हुजूम में एक औरत थी जो बारह साल से ख़ून बहने के मर्ज़ से रिहाई न पा सकी थी। 26बहुत डाक्टरों से अपना इलाज करवा करवा कर उसे कई तरह की मुसीबत झेलनी पड़ी थी और इतने में उस के तमाम पैसे भी ख़र्च हो गए थे। तो भी कोई फ़ाइदा न हुआ था बल्कि उस की हालत मज़ीद ख़राब होती गई। 27ईसा के बारे में सुन कर वह भीड़ में शामिल हो गई थी। अब पीछे से आ कर उस ने उस के लिबास को छुआ, 28क्यूँकि उस ने सोचा, “अगर मैं सिर्फ़ उस के लिबास को ही छू लूँ तो मैं शिफ़ा पा लूँगी।”

29ख़ून बहना फ़ौरन बन्द हो गया और उस ने अपने जिस्म में मह्सूस किया कि मुझे इस अज़ियतनाक हालत से रिहाई मिल गई है। 30लेकिन उसी लम्हे ईसा को ख़ुद मह्सूस हुआ कि मुझ में से तवानाई निकली है। उस ने मुड़ कर पूछा, “किस ने मेरे कपड़ों को छुआ है?”

31उस के शागिर्दों ने जवाब दिया, “आप ख़ुद देख रहे हैं कि हुजूम आप को घेर कर दबा रहा है। तो फिर आप किस तरह पूछ सकते हैं कि किस ने मुझे छुआ?”

32लेकिन ईसा अपने चारों तरफ़ देखता रहा कि किस ने यह किया है। 33इस पर वह औरत यह जान कर कि मेरे साथ क्या हुआ है ख़ौफ़ के मारे लरज़ती हुई उस के पास आई। वह उस के सामने गिर पड़ी और उसे पूरी हक़ीक़त खोल कर बयान की। 34ईसा ने उस से कहा, “बेटी, तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया है। सलामती से जा और अपनी अज़ियतनाक हालत से बची रह।”

35ईसा ने यह बात अभी ख़त्म नहीं की थी कि इबादतख़ाने के राहनुमा याईर के घर की तरफ़ से कुछ लोग पहुँचे और कहा, “आप की बेटी फ़ौत हो चुकी है, अब उस्ताद को मज़ीद तक्लीफ़ देने की क्या ज़रूरत?”

36उन की यह बात नज़रअन्दाज़ करके ईसा ने याईर से कहा, “मत घबराओ, फ़क़त ईमान रखो।” 37फिर ईसा ने हुजूम को रोक लिया और सिर्फ़ पत्रस, याक़ूब और उस के भाई यूहन्ना को अपने साथ जाने की इजाज़त दी। 38जब इबादतख़ाने के राहनुमा के घर पहुँचे तो वहाँ बड़ी अफ़्रा-तफ़्री नज़र आई। लोग ख़ूब गिर्या-ओ-ज़ारी कर रहे थे। 39उन्दर जा कर ईसा ने उन से कहा, “यह कैसा शोर-शराबा है? क्यूँ रो रहे हो? लड़की मर नहीं गई बल्कि सो रही है।”

40लोग हंस कर उस का मज़ाक़ उड़ाने लगे। लेकिन उस ने सब को बाहर निकाल दिया। फिर सिर्फ़ लड़की के वालिदैन और अपने तीन शागिर्दों को साथ ले कर वह उस कमरे में दाख़िल हुआ जिस में लड़की पड़ी थी। 41उस ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, “तलिथा क़ूम!” इस का मतलब है, “छोटी लड़की, मैं तुझे हुक्म देता हूँ कि जाग उठ!”

42लड़की फ़ौरन उठ कर चलने फिरने लगी। उस की उम्र बारह साल थी। यह देख कर लोग घबरा कर हैरान रह गए। 43ईसा ने उन्हें सन्जीदगी से समझाया कि वह किसी को भी इस के बारे में न बताएँ। फिर उस ने उन्हें कहा कि उसे खाने को कुछ दो।