मरक़ुस 10

तलाक़ के बारे में तालीम

1फिर ईसा उस जगह को छोड़ कर यहूदिया के इलाक़े में और दरया-ए-यर्दन के पार चला गया। वहाँ भी हुजूम जमा हो गया। उस ने उन्हें मामूल के मुताबिक़ तालीम दी।

मरक़ुस 10

ईसा छोटे बच्चों को बर्कत देता है

13एक दिन लोग अपने छोटे बच्चों को ईसा के पास लाए ताकि वह उन्हें छुए। लेकिन शागिर्दों ने उन को मलामत की। 14यह देख कर ईसा नाराज़ हुआ। उस ने उन से कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें न रोको, क्यूँकि अल्लाह की बादशाही इन जैसे लोगों को हासिल है। 15मैं तुम को सच्च बताता हूँ, जो अल्लाह की बादशाही को बच्चे की तरह क़बूल न करे वह उस में दाख़िल नहीं होगा।” 16यह कह कर उस ने उन्हें गले लगाया और अपने हाथ उन पर रख कर उन्हें बर्कत दी।

अमीर मुश्किल से बादशाही में दाख़िल हो सकते हैं

17जब ईसा रवाना होने लगा तो एक आदमी दौड़ कर उस के पास आया और उस के सामने घुटने टेक कर पूछा, “नेक उस्ताद, मैं क्या करूँ ताकि अबदी ज़िन्दगी मीरास में पाऊँ?”

18ईसा ने पूछा, “तू मुझे नेक क्यूँ कहता है? कोई नेक नहीं सिवा-ए-एक के और वह है अल्लाह। 19तू शरीअत के अह्काम से तो वाक़िफ़ है। क़त्ल न करना, ज़िना न करना, चोरी न करना, झूटी गवाही न देना, धोका न देना, अपने बाप और अपनी माँ की इज़्ज़त करना।”

20आदमी ने जवाब दिया, “उस्ताद, मैं ने जवानी से आज तक इन तमाम अह्काम की पैरवी की है।”

21ईसा ने ग़ौर से उस की तरफ़ देखा। उस के दिल में उस के लिए पियार उभर आया। वह बोला, “एक काम रह गया है। जा, अपनी पूरी जायदाद फ़रोख़्त करके पैसे ग़रीबों में तक़्सीम कर दे। फिर तेरे लिए आस्मान पर ख़ज़ाना जमा हो जाएगा। इस के बाद आ कर मेरे पीछे हो ले।” 22यह सुन कर आदमी का मुँह लटक गया और वह मायूस हो कर चला गया, क्यूँकि वह निहायत दौलतमन्द था।

23ईसा ने अपने इर्दगिर्द देख कर शागिर्दों से कहा, “दौलतमन्दों के लिए अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है!”

24शागिर्द उस के यह अल्फ़ाज़ सुन कर हैरान हुए। लेकिन ईसा ने दुबारा कहा, “बच्चो! अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होना कितना मुश्किल है। 25अमीर के अल्लाह की बादशाही में दाख़िल होने की निस्बत ज़ियादा आसान यह है कि ऊँट सूई के नाके में से गुज़र जाए।”

26इस पर शागिर्द मज़ीद हैरतज़दा हुए और एक दूसरे से कहने लगे, “फिर किस को नजात मिल सकती है?”

27ईसा ने ग़ौर से उन की तरफ़ देख कर जवाब दिया, “यह इन्सान के लिए तो नामुम्किन है, लेकिन अल्लाह के लिए नहीं। उस के लिए सब कुछ मुम्किन है।”

28फिर पत्रस बोल उठा, “हम तो अपना सब कुछ छोड़ कर आप के पीछे हो लिए हैं।”

29ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच्च बताता हूँ, जिस ने भी मेरी और अल्लाह की ख़ुशख़बरी की ख़ातिर अपने घर, भाइयों, बहनों, माँ, बाप, बच्चों या खेतों को छोड़ दिया है 30उसे इस ज़माने में ईज़ारसानी के साथ साथ सौ गुना ज़ियादा घर, भाई, बहनें, माएँ, बच्चे और खेत मिल जाएँगे। और आने वाले ज़माने में उसे अबदी ज़िन्दगी मिलेगी। 31लेकिन बहुत से लोग जो अब अव्वल हैं उस वक़्त आख़िर होंगे और जो अब आख़िर हैं वह अव्वल होंगे।”

ईसा तीसरी दफ़ा अपनी मौत का ज़िक्र करता है

32अब वह यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे थे और ईसा उन के आगे आगे चल रहा था। शागिर्द हैरतज़दा थे जबकि उन के पीछे चलने वाले लोग सहमे हुए थे। एक और दफ़ा बारह शागिर्दों को एक तरफ़ ले जा कर ईसा उन्हें वह कुछ बताने लगा जो उस के साथ होने को था। 33उस ने कहा, “हम यरूशलम की तरफ़ बढ़ रहे हैं। वहाँ इब्न-ए-आदम को राहनुमा इमामों और शरीअत के उलमा के हवाले कर दिया जाएगा। वह उस पर सज़ा-ए-मौत का फ़त्वा दे कर उसे ग़ैरयहूदियों के हवाले कर देंगे, 34जो उस का मज़ाक़ उड़ाएँगे, उस पर थूकेंगे, उस को कोड़े मारेंगे और उसे क़त्ल करेंगे। लेकिन तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।”

लूक़ा 9

पैरवी की सन्जीदगी

57सफ़र करते करते किसी ने रास्ते में ईसा से कहा, “जहाँ भी आप जाएँ मैं आप के पीछे चलता रहूँगा।”

58ईसा ने जवाब दिया, “लोमड़ियाँ अपने भटों में और परिन्दे अपने घोंसलों में आराम कर सकते हैं, लेकिन इब्न-ए-आदम के पास सर रख कर आराम करने की कोई जगह नहीं।”

59किसी और से उस ने कहा, “मेरे पीछे हो ले।”

लेकिन उस आदमी ने कहा, “ख़ुदावन्द, मुझे पहले जा कर अपने बाप को दफ़न करने की इजाज़त दें।”

60लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “मुर्दों को अपने मुर्दे दफ़नाने दे। तू जा कर अल्लाह की बादशाही की मुनादी कर।”

61एक और आदमी ने यह माज़रत चाही, “ख़ुदावन्द, मैं ज़रूर आप के पीछे हो लूँगा। लेकिन पहले मुझे अपने घर वालों को ख़ैरबाद कहने दें।”

62लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “जो भी हल चलाते हुए पीछे की तरफ़ देखे वह अल्लाह की बादशाही के लाइक़ नहीं है।”

मत्ती 10

ईसा और उस के पैरोकारों को क़बूल करने का अज्र

37जो अपने बाप या माँ को मुझ से ज़ियादा पियार करे वह मेरे लाइक़ नहीं। जो अपने बेटे या बेटी को मुझ से ज़ियादा पियार करे वह मेरे लाइक़ नहीं। 38जो अपनी सलीब उठा कर मेरे पीछे न हो ले वह मेरे लाइक़ नहीं।

लूक़ा 10

नेक सामरी की तम्सील

25एक मौक़े पर शरीअत का एक आलिम ईसा को फंसाने की ख़ातिर खड़ा हुआ। उस ने पूछा, “उस्ताद, मैं क्या क्या करने से मीरास में अबदी ज़िन्दगी पा सकता हूँ?”

26ईसा ने उस से कहा, “शरीअत में क्या लिखा है? तू उस में क्या पढ़ता है?”

27आदमी ने जवाब दिया, “‘रब्ब अपने ख़ुदा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपनी पूरी ताक़त और अपने पूरे ज़हन से पियार करना।’ और ‘अपने पड़ोसी से वैसी मुहब्बत रखना जैसी तू अपने आप से रखता है’।”

28ईसा ने कहा, “तू ने ठीक जवाब दिया। ऐसा ही कर तो ज़िन्दा रहेगा।”

29लेकिन आलिम ने अपने आप को दुरुस्त साबित करने की ग़रज़ से पूछा, “तो मेरा पड़ोसी कौन है?”

30ईसा ने जवाब में कहा, “एक आदमी यरूशलम से यरीहू की तरफ़ जा रहा था कि वह डाकुओं के हाथों में पड़ गया। उन्हों ने उस के कपड़े उतार कर उसे ख़ूब मारा और अधमुआ छोड़ कर चले गए। 31इत्तिफ़ाक़ से एक इमाम भी उसी रास्ते पर यरीहू की तरफ़ चल रहा था। लेकिन जब उस ने ज़ख़्मी आदमी को देखा तो रास्ते की परली तरफ़ हो कर आगे निकल गया। 32लावी क़बीले का एक ख़ादिम भी वहाँ से गुज़रा। लेकिन वह भी रास्ते की परली तरफ़ से आगे निकल गया। 33फिर सामरिया का एक मुसाफ़िर वहाँ से गुज़रा। जब उस ने ज़ख़्मी आदमी को देखा तो उसे उस पर तरस आया। 34वह उस के पास गया और उस के ज़ख़्मों पर तेल और मै लगा कर उन पर पट्टियाँ बाँध दीं। फिर उस को अपने गधे पर बिठा कर सराय तक ले गया। वहाँ उस ने उस की मज़ीद देख-भाल की। 35अगले दिन उस ने चाँदी के दो सिक्के निकाल कर सराय के मालिक को दिए और कहा, ‘इस की देख-भाल करना। अगर ख़र्चा इस से बढ़ कर हुआ तो मैं वापसी पर अदा कर दूँगा’।”

36फिर ईसा ने पूछा, “अब तेरा क्या ख़याल है, डाकुओं की ज़द में आने वाले आदमी का पड़ोसी कौन था? इमाम, लावी या सामरी?”

37आलिम ने जवाब दिया, “वह जिस ने उस पर रहम किया।”

ईसा ने कहा, “बिलकुल ठीक। अब तू भी जा कर ऐसा ही कर।”

ईसा मरियम और मर्था के घर जाता है

38फिर ईसा शागिर्दों के साथ आगे निकला। चलते चलते वह एक गाँओ में पहुँचा। वहाँ की एक औरत बनाम मर्था ने उसे अपने घर में ख़ुशआमदीद कहा। 39मर्था की एक बहन थी जिस का नाम मरियम था। वह ख़ुदावन्द के पाँओ में बैठ कर उस की बातें सुनने लगी 40जबकि मर्था मेहमानों की ख़िदमत करते करते थक गई। आख़िरकार वह ईसा के पास आ कर कहने लगी, “ख़ुदावन्द, क्या आप को पर्वा नहीं कि मेरी बहन ने मेहमानों की ख़िदमत का पूरा इन्तिज़ाम मुझ पर छोड़ दिया है? उस से कहें कि वह मेरी मदद करे।”

41लेकिन ख़ुदावन्द ईसा ने जवाब में कहा, “मर्था, मर्था, तू बहुत सी फ़िक्रों और परेशानियों में पड़ गई है। 42लेकिन एक बात ज़रूरी है। मरियम ने बेहतर हिस्सा चुन लिया है और यह उस से छीना नहीं जाएगा।”

लूक़ा 11

दुआ किस तरह करनी है

1एक दिन ईसा कहीं दुआ कर रहा था। जब वह फ़ारिग़ हुआ तो उस के किसी शागिर्द ने कहा, “ख़ुदावन्द, हमें दुआ करना सिखाएँ, जिस तरह यहया ने भी अपने शागिर्दों को दुआ करने की तालीम दी।”

2ईसा ने कहा, “दुआ करते वक़्त यूँ कहना,

ऐ बाप,

तेरा नाम मुक़द्दस माना जाए।

तेरी बादशाही आए।

3हर रोज़ हमें हमारी रोज़ की रोटी दे।

4हमारे गुनाहों को मुआफ़ कर।

लूक़ा 13

सबत के दिन कुबड़ी औरत की शिफ़ा

10सबत के दिन ईसा किसी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था। 11वहाँ एक औरत थी जो 18 साल से बदरुह के बाइस बीमार थी। वह कुबड़ी हो गई थी और सीधी खड़ी होने के बिलकुल क़ाबिल न थी। 12जब ईसा ने उसे देखा तो पुकार कर कहा, “ऐ औरत, तू अपनी बीमारी से छूट गई है!” 13उस ने अपने हाथ उस पर रखे तो वह फ़ौरन सीधी खड़ी हो कर अल्लाह की तम्जीद करने लगी।

14लेकिन इबादतख़ाने का राहनुमा नाराज़ हुआ क्यूँकि ईसा ने सबत के दिन शिफ़ा दी थी। उस ने लोगों से कहा, “हफ़्ते के छः दिन काम करने के लिए होते हैं। इस लिए इत्वार से ले कर जुमए तक शिफ़ा पाने के लिए आओ, न कि सबत के दिन।”

15ख़ुदावन्द ने जवाब में उस से कहा, “तुम कितने रियाकार हो! क्या तुम में से हर कोई सबत के दिन अपने बैल या गधे को खोल कर उसे थान से बाहर नहीं ले जाता ताकि उसे पानी पिलाए? 16अब इस औरत को देखो जो इब्राहीम की बेटी है और जो 18 साल से इब्लीस के बंधन में थी। जब तुम सबत के दिन अपने जानवरों की मदद करते हो तो क्या यह ठीक नहीं कि औरत को इस बंधन से रिहाई दिलाई जाती, चाहे यह काम सबत के दिन ही क्यूँ न किया जाए?” 17ईसा के इस जवाब से उस के मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हो गए। लेकिन आम लोग उस के इन तमाम शानदार कामों से ख़ुश हुए।

लूक़ा 13

तंग दरवाज़ा

22ईसा तालीम देते देते मुख़्तलिफ़ शहरों और दीहातों में से गुज़रा। अब उस का रुख़ यरूशलम ही की तरफ़ था।

लूक़ा 13

यरूशलम पर अफ़्सोस

31उस वक़्त कुछ फ़रीसी ईसा के पास आ कर उस से कहने लगे, “इस मक़ाम को छोड़ कर कहीं और चले जाएँ, क्यूँकि हेरोदेस आप को क़त्ल करने का इरादा रखता है।”

लूक़ा 14

शागिर्द होने की क़ीमत

25एक बड़ा हुजूम ईसा के साथ चल रहा था। उन की तरफ़ मुड़ कर उस ने कहा, 26“अगर कोई मेरे पास आ कर अपने बाप, माँ, बीवी, बच्चों, भाइयों, बहनों बल्कि अपने आप से भी दुश्मनी न रखे तो वह मेरा शागिर्द नहीं हो सकता। 27और जो अपनी सलीब उठा कर मेरे पीछे न हो ले वह मेरा शागिर्द नहीं हो सकता।